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अगस्त 2020 जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले की 70वीं वर्षगाँठ है। मेनोनाइट वर्ल्ड काँफ्रेंस (एमडब्ल्यूसी) संसार भर के विश्वासी समुदायों के एक बड़े संघ में शामिल हुआ है जिसने सरकारों से आव्हान किया है कि परमाणु हथियारों पर प्रतिबन्ध की संधि को दृढ़ करें।
इस वक्तव्य में कहा गया है, “परमाणु हथियार शान्ति नहीं लाते, परन्तु यह हमारे संसार में, हमारे जीवनों में, और समुदायों में युद्ध के आतंक और भय को और बढ़ा देते हैं।”
एमडब्ल्यूसी के जनरल सेक्रटरी सीज़र गार्सिया कहते हैं, “ऐतिहासिक रूप से शान्ति की एक कलीसिया के रूप में, एमडब्ल्यूसी युद्ध और हिंसा को व्यक्तिगत या राष्ट्रीय स्तर पर समस्याओं के समाधान का एक माध्यम माने जाने का विरोध करती है। परमाणु हथियार – जो उपयोग किए जाने पर लम्बे समय तक मनुष्य और सृष्टि के अविवेकीय नाश का कारण बनती है – किसी भी देश द्वारा उपयोग में न लाए जाएं। एमडब्ल्यूसी ने दशकों से परमाणु खतरे के विरोध में औपचारिक रूप से आवाज उठाया है।”
“हम यह मानते हैं कि यदि एक भी परमाणु हथियार अस्तित्व में हो तो यह विश्वास की विभिन्न विचारधारों के मूल सिद्धान्तों का उल्लंघन करता है . . .। परमाणु हथियार न सिर्फ भविष्य के लिए एक बड़ा जोखिम है, परन्तु इस धरती पर इस समय इनकी उपस्थिति नैतिक बुनियादों के सामान्य हितों को कम आँकती है।”
इस कथन में सरकारों का आव्हान किया गया है कि वे एक ऐसे संसार का निर्माण करने का संकल्प ले जो परमाणु हथियार से मुक्त “अधिक शान्तिपूर्ण, सुरक्षित, और न्यायपूर्ण हो।”
1945 के समापन में, 213,000 लोग जापान में गिराए गए बमों के कारण मारे गए। आक्रमण बाद के वर्षों में भी यह मानवजाति और सृष्टि दोनों की ही पीड़ा, दुख और नाश का कारण बने। इस वक्तव्य में इन आक्रमणों से बच गए लोगों को भी स्मरण किया गया है जो परमाणु हथियार से हुई हानि के गवाह हैं।
इस वक्तव्य में लिखा है, “हम नस्लवाद और उपनिवेशवाद पर विलाप करते हैं जिससे प्रेरित हो कर परमाणु हथियारों से सम्पन्न देशों ने ऐसे समुदायों पर इन हथियारों को परखा जिन्हें वे कम महत्व का मानते हैं, जो उनके लोग नहीं हैं, जो उनके लिए मायने नहीं रखते, जो विनाशकारी ताकतों के धंधों के कारण नाश हो गए। संसार भर के आदिवासी समुदाय के लोगों के द्वारा झेली जा रही पीड़ा, शोषण, और अत्याचार के कारण हम दुखी हैं जिनकी देह, भूमि, जल, और वायु ऐसे लोगों की महत्वाकांक्षाओं की प्रयोगशाला बन चुके हैं जो ताकत के बल पर हावी हो जाते हैं।”
संयुक्त राष्ट्र ने 2017 में परमाणु हथियारों के प्रतिबन्ध पर स्थापित संधि को स्वीकार किया है; यह 50 देशों द्वारा दृढ़ किए जाने के 90 दिनों पश्चात लागू कर दी जाएगी।
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परमाणु खतरे के विरोध में एमडब्ल्यूसी के कुछ विचार
पीस कमेटी का संदेश, छठवाँ विश्व सम्मेलन, स्ट्रासबर्ग, फ्राँस
“. . .परमाणु युद्ध के खतरे और परमाणु प्रदूषण से पर्यावरण को दूषित करने की उनकी क्षमता वर्तमान समय के मुख्य नैतिक बुराइयाँ माने गए हैं। परमाणु हथियारों न सिर्फ प्राण ले लेते हैं; वे सारे जीवन को नाश कर देते हैं। परमेश्वर के लोगों के रूप में परमाणु खतरे के मध्य भी हम आशा के साथ सेवा करते है. . .।”
चिन्ता व्यक्त करते हुए पत्र, तृतीय एशिया मेनोनाइट काँफ्रेस सभा, तेइपेइ, 1986
“. . . मसीहियों के रूप में हम, अपनी राष्ट्रीयता, राजनीति, या दृष्टिकोण से ऊपर उठ कर परमाणु शक्ति के उत्पादन के विरोध में बोलने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
—मेनोनाइट वर्ल्ड काँफ्रेस विज्ञप्ति